उत्तर प्रदेश के मुख्य जिलों में से एक प्रतापगढ़ है, जो लखनऊ से करीब 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह शहर प्रयागराज के पास है और इसकी प्रमुख नदियां गंगा, साईं, और बकुलही हैं। इसके पर्यटन स्थल यहां के खूबसूरत और महत्वपूर्ण स्थलों के रूप में प्रसिद्ध हैं। यदि आप प्रयागराज जा रहे हैं, तो प्रतापगढ़ को देखने का अवसर न गवाएं। इस स्टोरी में हम आपको प्रतापगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में विवरण देंगे।
5 famous temples of Pratapgarh – प्रतापगढ़ के 5 मुख मंदिर
1.) बेल्हा देवी मंदिर
प्रतापगढ़ जिले के अधिकांश क्षेत्रों से होकर बहने वाली सई नदी के किनारे स्थित है देवी मां बेल्हा देवी का यह मंदिर। बेल्हा देवी के प्रति उच्च समर्पण के कारण इस जिले को बेला या बेल्हा के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि बेल्हा देवी के इस मंदिर का निर्माण राजा प्रताप बहादुर सिंह ने 1811-15 के दौरान कराया था। मंदिर के गर्भगृह में बेल्हा देवी की पूजा पिंडी के रूप में की जाती है। मंदिर के शिखर पर देवी मां की संगमरमर की मूर्ति है, जो आकर्षक वस्त्र और गहनों से सजाई जाती है। प्रतिमा एक छोटे संगमरमर के गुंबददार मंदिर में स्थित है, जहां पिंडी की भी पूजा की जाती है।
मंदिर की स्थापना के बारे में पुराणों में कहा जाता है कि राजा दक्ष के यज्ञ आयोजन के दौरान सती बिना बुलाये वहां पहुंच गईं थीं। जब वहां दक्ष ने शिव का अपमान किया तो माता सती अपने पिता द्वारा अपमान को झेलने में असमर्थ थी, इसलिए उन्होंने हवन कुंड मे कूदकर अपने शरीर का बलिदान दे दिया। जब शिव उनका शव लेकर चले गए, तो विष्णु ने उन्हें चक्र चलाकर खंडित कर दिया था। जहाँ-जहाँ सती के शरीर के अंश गिरे वहां-वहां देवी मंदिरों की स्थापना हुई। यहाँ पर सती का बेला का अंश गिरा था। भगवान राम जब वनवास के लिए जा रहे थे, तो सई नदी के किनारे पर उन्होंने माँ बेल्हा देवी की पूजा अर्चना की थी। माता रानी के सामने श्रद्धा से मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है।
स्थान:- बेल्हा , प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश।
समय:-
गर्मी:- (सुबह) 4:00 – (रात) 10:00 बजे तक
सर्दी:- (सुबह) 5:00 -(रात) 9:00 बजे तक
बेल्हा देवी मंदिर
2.) शनि देव मंदिर
प्रयागराज जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर, प्रतापगढ़ मार्ग पर शनिदेव का एक सिद्ध मंदिर स्थित है। यह मंदिर सन् 1985 में सावन महीने के दौरान परमा महाराज द्वारा स्थापित किया गया था, अब इसको 34 साल हो चुके हैं। मंदिर के वर्तमान पुजारी और परमा महाराज के बेटे मंगलाचरण मिश्र के अनुसार, महाराज जी को स्वप्न में शनिदेव के दर्शन हुए, और उन्हें अपने स्थान पर आने के लिए कहा गया। महाराज जी ने उस स्थान की खोज शुरु की और ढूंढते हुये उन्हें ,बकुलाही नदी के पास एक छोटे से जंगल में शनिदेव की मूर्ति दबी मिली । इसके बाद, वे वहां पूजा करके अपने घर वापस आ गये। कुछ दिनों बाद, उन्हें फिर से वही सपना आया, और उन्होंने फिर से उस स्थान पर जाकर पूजा की, और फिर अपने कार्यालय वापस चले गए। धीरे धीरे कार्य मे प्राग्रति मिलने पर उन्होंने इस बात का जिक्र अपने साथियों से किया और सबने मिलकर एक मंदिर बनाने का फैसला किया। क्षेत्र के लोगों और साथियों के सहयोग से मंदिर निर्मित हो गया। मंदिर बनने के बाद, यहां पर धीरे-धीरे श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ गई और श्रद्धालू अपनी इच्छा पूर्ती के लिए यहाँ आने लगे। सन् 1986 में, महाराज ने शनि मंदिर में सरसों के तेल से अखंड ज्योति जलाई, जो आज तक निरंतर जलती रहती है।
स्थान:- शनि देव रोड, बेल्हा , प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश
समय:-
(सुबह) 6:00 – (रात) 9:00 बजे तक
3.) भक्तिधाम मंदिर
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के मनगढ़ गाँव में स्थित भक्ति धाम मंदिर लाखों करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था स्थल है। इस मंदिर की नींव जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने 26 अक्टूबर 1996 को रखी थी और 2005 में यह मंदिर खड़ा किया गया था। मंदिर का उद्घाटन 17 नवंबर 2005 में कृपालु जी महाराज द्वारा हुआ था। इसका निर्माण अहमदाबाद के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट ने भक्ति और आस्था भाव के साथ किया।
भक्तिधाम मंदिर में श्री कृष्ण और राधा रानी के प्रेम को अद्वितीय झांकियों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, जैसे कि वृंदावन के प्रेम मंदिर और बरसाना के कीर्ति मंदिर में किया गया है।
इस मंदिर का विशेषता यह है कि यह ग्रेनाइट के पत्थरों पर खड़ा है और इसके मुख्य दरवाजे चंदन की लकड़ी से बने हैं। मंदिर में तीन मुख्य द्वार हैं, जो मंदिर के तीनों ओर खुलते हैं। इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 108 फीट है और निचले तल पर श्री कृष्ण और राधा रानी के अष्ट सखियों के साथ उनके जीवन के दृश्यों को बड़ी रमणीयता के साथ चित्रित किया गया है। मंदिर को दो भागों में बांटा गया है, जिनमें पहले भाग में राम, सीता, श्री कृष्ण और राधा रानी के साथ बलराम के जीवन के प्रसंग चित्रित हैं, जबकि दूसरे भाग में महाराज कृपालु के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है।
स्थान:- मनगढ़ , प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश
समय:-
सुबह:- 8:30 – 11:00 बजे तक
दोपहर:- 1:00 – 8:00 (रात) तक
4.) घुइसारनाथ( घुसमेश्वरनाथ) मंदिर
घुइसरनाथ मंदिर, जो भारत के प्रतापगढ़ ज़िले के लालगंज अझारा नगर में सई नदी के किनारे स्थित है, एक प्रमुख हिन्दू मंदिर है। यहां भगवान घुश्मेश्वरज्योतिर्लिंग मन एक मंदिर है। इस स्थल पर स्थित शिवलिंग की कथा शिव महापुराण में उपलब्ध है, और लोकप्रिय भ्रमण है कि भगवान राम जब अयोध्या से वनवास के लिए गए थे, तो उन्होंने इस स्थान पर विश्राम किया था ।
शिवमहापुराण के अनुसार, घुश्मा नामक ब्राह्मण विदुषी महिला ने शिवलिंग की वर्षों तक तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। भगवान शिव शंकर ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और घुश्मा के मर चुके पुत्र को जीवित कर दिया था। इस स्थान पर भगवान शिव के प्रकट होने के बाद स्वयंभू शिवलिंग उत्पन्न हुआ, जिसे घुश्मा के नाम से भी पुकारा जाने लगा, हालांकि अब यह स्थल घुइसरनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इस अद्वितीय स्थल पर बाबा घुइसरनाथ अपने भक्तों की सभी तमन्नाओं को पूरा करते हैं, और इस धाम से कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं लौटता है।
स्थान:- लालगंज , प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश
समय:-
(सुबह) 6:00 – (रात) 10:00
5.)बाबा भयहरण नाथ धाम
प्रसिद्ध धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल, भयहरणनाथ धाम, जो प्रतापगढ़ जनपद के मुख्यालय के दक्षिण में लगभग ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, विशेष आध्यात्मिक महत्व रखता है । यह बकुलाहीनदी के किनारे स्थित है। मुख्य मंदिर ऊँचे पहाड़ पर बना हुआ है और इसका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। मुख्य मंदिर के प्रांगण में नंदी बैल विराजमान है, जिन्हें भगवान शिव के वाहन के रूप में पूजा जाता है। मुख्य मंदिर के सामने एक बारादरी से जुड़ी हुई शंकर पार्वती की मूर्ति है, जिसका निर्माण कुर्मी क्षत्रिय समुदाय ने 7 नवंबर 1960 को किया था।
इसके अलावा, यहां बाबा भैरवन मंदिर से जुड़ी एक महत्वपूर्ण मान्यता भी है। एक बार एक राक्षस जिसका नाम द्राक्षत था, यहां आकर पुष्प उठा ले गया। जब भगवान शिव को इसकी यह बात पता चली, तो उन्होंने गुस्से में तांडव नृत्य किया, जिससे धरती हिलने लगी और जीव-जंतु घबरा गए। विष्णु भगवान ने इस स्थिति को शांत करने के लिए भगवान शिव को मनाया, जिसके बाद भगवान शिव ने त्रिशूल लेकर राक्षस के साथ युद्ध किया, जिसके परिणामस्वरूप राक्षस भागकर पुष्प को अपनी मां दविला के पेट में छिपा दिया। भगवान शिव फिर पुष्प को वापस यहां ले आये, जो आज “बचकुन” नामक पेड़ के रूप में मौजूद है।
स्थान :- संग्रामपुरुप्रहार , प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
समय :-
सुबह:- 6:00 – 11:00 बजे तक
शाम:- 5:00 – 10:00 बजे तक
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