10 Most Popular Vishnu temples in India

10 Most Popular Vishnu temples in India
10 Most Popular Vishnu temples in India

भगवान विष्णु, सृष्टि के स्वामी और सम्पूर्ण विश्व के अवतारिता हैं। उनके आदर्श और पावन चरित्र ने सदियों से मनुष्यों को प्रेरित किया है, और उनके पवित्र मंदिरों की स्थलीय भावना से जुड़े हुए श्रद्धालु हरियाणवी रूह को आंबर तक पहुंचा दिया है। इन पवित्र स्थलों में से दस ऐसे मंदिर हैं जो भगवान विष्णु को समर्पित हैं और उनमें इतनी दिव्यता है कि यात्री भक्तों का मन वहां आनंद के सागर में डूबकर निकल आता है।

श्री बद्रीनाथ मंदिर, हिमालय के गोद में अवस्थित है। यहां के पवित्र दर्शन से मनुष्य को आभा के पथ पर आगे बढ़ने का साहस मिलता है। उत्तराखंड के इस मंदिर के दर्शन  के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं, और भगवान के ध्यान में खोए हुए उनके हृदय को शांति और प्रशांति की प्राप्ति होती है।

जगन्नाथपुरी, ओड़ीशा का गर्व है और यहां का जगन्नाथ मंदिर विश्व के सबसे प्रसिद्ध हैं। यहां के भक्त हर साल आने वाले रथयात्रा के शोभायात्रा को देखने के लिए पूरे विश्व से एकत्र होते हैं। जगन्नाथपुरी के इस मंदिर के संदर्भ में कई रहस्य और किस्से हैं जो हर भक्त के दिल को छू लेते हैं।

नंगनाथस्वामी मंदिर, कुक्की से जुड़ा हुआ है और यहां के भक्तों के दिलों में अपनी एक अलग ही जगह है। इस पवित्र स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति को आसानी से देखा जा सकता है, जिससे भक्तों को भगवान के साथ अपनी वास्तविकता के एक दर्शन मिलते हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर, आंध्र प्रदेश का अभिमान है और इस मंदिर का नाम तो सभी ने सुना होगा। भगवान विष्णु के इस मंदिर के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु हर साल यात्रा करते हैं, और भगवान के सामीप्य का अनुभव करके उन्हें आशीर्वाद मिलता है।

द्वारकाधीश मंदिर, द्वारका में स्थित है और यहां की सुंदरता और पवित्रता ने भक्तों के मन को चुरा लिया और दिलों के सारे दरवाजे खोल दिए। इस अद्भुत स्थल का यात्रा करना जीवन के एक अनूठे अनुभव को देता है।

अद्भुत मंदिर – पद्मनाभस्वामी, केरल के हृदय में स्थित है और इसकी सुंदरता के बारे में शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है। यहां की मूर्ति भगवान विष्णु के अवतार को दिखाती है, जिसकी महिमा का वर्णन करने के लिए शब्दों की कमी महसूस होती है। भक्तों के हृदय को आभा और शांति से भर देने वाले इस मंदिर के सानिध्य में खो जाने का अनुभव है एक दिव्य सफलता की अनुभूति।

ये थे कुछ मंदिर जो एक अद्भुत माहौल में हमारे अंतर्मन को स्पर्श करते हैं और भगवान विष्णु के धार्मिक महत्व को अनुभव करने का अवसर प्रदान करते हैं। ये मंदिर अपने समृद्ध इतिहास, संस्कृति, और आध्यात्मिकता से ओतप्रोत हैं, और भक्तों को नए उत्साह के साथ जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ने का साहस देते हैं। इन मंदिरों के दर्शन के लिए लाखों लोग प्रतिवर्ष यात्रा करते हैं, जिससे वे अपनी आत्मा को शुद्ध करके नये जोश और ऊर्जा से भर जाते हैं।

ये भगवान विष्णु के श्रद्धालुओं के लिए स्वर्ग के समान हैं और उन्हें आत्मिक शांति के आस्वादन का अवसर प्रदान करते हैं। इन मंदिरों के अंदर की शांति और पवित्रता का अनुभव करके ही भक्त अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। भगवान विष्णु के इन प्रसिद्ध मंदिरों का दर्शन करना असाध्य सा नहीं है, बल्कि यह एक अनूठा और दिव्य अनुभव है जो भक्तों को जीवन भर याद रहेगा।

इन अद्भुत मंदिरों की ध्वजा ऊंची छाओं में फहराती है, और यहां के वातावरण में वायु प्रदूषण की बजाय शुद्धता की महक फैलती है। भगवान विष्णु के इन मंदिरों की नींव भक्तों के प्रेम और श्रद्धा से भरी हुई है जो इन्हें सबसे अलग बनाती हैं। जो लोग इन मंदिरों का दर्शन करते हैं, वे भगवान विष्णु के समीप होकर मानो अपने आप में एक नई पहचान प्राप्त कर

जाते हैं। भगवान विष्णु के इस प्रेम भरे संबंध के माध्यम से, भक्त अपने जीवन को समर्थ बनाते हैं, संघर्षों से लड़ने का हौसला मिलता है और आत्मिक उन्नति की दिशा में एकाग्रता से प्रवृत्त होते हैं।

भगवान विष्णु के इन पवित्र मंदिरों के विचार के साथ, हमारी भारतीय संस्कृति और धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जुड़ा हुआ है। ये मंदिर न केवल धार्मिक महत्व के साथ भरे हुए हैं, बल्कि इनके शौर्य, सौंदर्य, और पवित्रता की कहानियां हमें अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती हैं। यहां की भव्यता और महिमा के सामने मनुष्य छोटा और नाजुक हो जाता है, और अपने अहंकार को छोड़कर वह भगवान के साम्राज्य को प्राप्त करने के लिए समर्थ हो जाता है।

जब हम इन मंदिरों के स्वर्णिम पथ पर चलते हैं, तो हमारे मन को भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति का अनुभव होता है। हम अपनी आँखों से देखते हैं, पर वास्तविकता में हम भगवान के सानिध्य में होते हैं। ये मंदिर हमें याद दिलाते हैं कि जीवन का असली मार्ग भगवान की अनंत कृपा में भक्ति और सेवा करने में है। भगवान विष्णु के सच्चे भक्त अपने जीवन को उनके दिशा-निर्देश में चलते हैं और पूरे विश्व के लिए प्रेम और समर्पण का संदेश देते हैं।

इन पवित्र मंदिरों के दर्शन से, हमारे अंतर्मन की आँधी शांत हो जाती है और हम अपने जीवन को सकारात्मक बनाने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। भगवान विष्णु के इन पवित्र मंदिरों का दर्शन करके हम अपनी आत्मा को धोने, स्नान करने, और आनंद के सागर में डूबने का अनुभव करते हैं। यहां के पवित्र भूमि पर हम भगवान की कृपा को महसूस करते हैं और भगवान के संग सदैव जुड़े रहने की प्रार्थना करते हैं। इन पवित्र मंदिरों के दर्शन से हमारे जीवन को एक नयी रोशनी मिलती है, और हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए नयी ऊर्जा से भर जाते हैं।


बद्रीनाथ मंदिर, उत्तराखंड

    • यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है , ये मंदिर भारत में उत्तराखंड में बद्रीनाथ शहर में स्थित है |बद्रीनाथ मंदिर , चारधाम और छोटा चारधाम तीर्थ स्थलों में से एक है |ऋषिकेश से यह 214 किलोमीटर की दुरी पर उत्तर दिशा में स्थित है | बद्रीनाथ मंदिर शहर में मुख्य आकर्षण है | प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है | इसकी ऊँचाई करीब 15 मीटर है |सोलहवीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवाकर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना करवा दी |और यह भी माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8 वी सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था |पौराणिक कथा के अनुसार यह स्थान भगवान शिव भूमि( केदार भूमि ) के रूप में व्यवस्थित था | भगवान विष्णु अपने ध्यानयोग के लिए एक स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के पास शिवभूमि का स्थान बहुत भा गया | उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के पास) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास बालक रूप धारण किया और रोने लगे | यह कहते है कि एक बार देवी लक्ष्मी , भगवान विष्णु से रूठकर मायके चले गयी | तब भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए तपस्या करने लगे | जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई | तो देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु को ढूंढते हुए उस जगह पहुँच गई , जहाँ भगवान विष्णु तपस्या कर रहे थे | उस समय उस स्थान पर बदरी (बेड) का वन था | बेड के पेड़ में बैठकर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी  इसलिए लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को “बद्रीनाथ” नाम दिया |

badrinath tample    Badrinath tample


    • पुरी जगन्नाथ मंदिर, पुरी उड़ीसा

    • पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर, जिसे भारत के चार धामों (तीर्थयात्राओं) में से एक माना जाता है, ओडिशा राज्य के प्राचीन शहर पुरी में स्थित है। ब्रह्मांड के स्वामी, भगवान विष्णु के एक रूप, भगवान जगन्नाथ को समर्पित, इस प्राचीन मंदिर में हर साल लाखों भक्त आते हैं। प्रसिद्ध रथयात्रा उत्सव के दौरान यह संख्या तेजी से बढ़ जाती है।लोककथाओं के अनुसार, जगन्नाथ (ब्रह्मांड के भगवान) के रूप में जाने जाने से पहले, भगवान को ‘पुरुषोत्तम’ के रूप में पूजा जाता था – जो दुनिया के निर्माता, रक्षक और संहारक हैं। ऐसा माना जाता है कि पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर की वर्तमान संरचना का निर्माण 12वीं शताब्दी ईस्वी में राजा अनंत वर्मन चोदगंगा देव द्वारा किया गया था, जो गंगा राजवंश के संस्थापक थे। हालाँकि, मंदिर का निर्माण 1230 ई. में अनंगभीम देव तृतीय के शासनकाल में पूरा हुआ, जिन्होंने मंदिर में देवताओं की स्थापना भी की थी।पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सबसे महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक प्रसिद्ध रथ यात्रा उत्सव है। इस भव्य उत्सव को देखने के लिए हर साल हजारों भक्त पुरी आते हैं। यह त्यौहार आषाढ़ माह के दूसरे दिन (हिन्दू कैलेंडर के अनुसार) मनाया जाता है। इस रथ महोत्सव के लिए हर साल तीन रथों का निर्माण किया जाता है।यात्रा के पहले दिन, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियों को अलग-अलग रथों में बैठाया जाता है और एक भव्य जुलूस के साथ गुंडिचा मंदिर – भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर, जो कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, ले जाया जाता है। त्योहार के 10वें दिन, मूर्तियों को वापस जगन्नाथ मंदिर में लाया जाता है, और इस वापसी यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है।

JAGANNATH PURI TAMPLE

                                                                                         JAGANNATH PURI TAMPLE


    • रंगनाथस्वामी मंदिर, तमिलनाडु

    • श्री रंगनाथस्वामी मंदिर भगवान रंगनाथ को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। भगवान रंगनाथ को श्री विष्णु का ही अवतार माना जाता है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में स्थित है इसलिए इसे श्रीरंगम मंदिर (Srirangam Temple) भी कहा जाता हैं। श्रीरंगम मंदिर तमिलनाडु में बहने वाली पावन नदी, कावेरी नदी से एक ओर से घिरा है और वहीं दूसरी तरफ से कोलिदम (कोलेरून) से घिरा हुआ है।भगवान श्री राम के वनवास काल में, इस मंदिर में देवताओं की, भगवान राम के द्वारा पूजा की जाती थी और रावण पर श्रीराम की विजय के बाद मंदिर को राजा विभीषण को सौंप दिया गया। भगवान श्री विष्णु विभिषण के सामने उपस्थित हुए और इसी स्थान पर ‘रंगनाथ’ के रूप में रहने की इच्छा व्यक्त की। कहा जाता है कि तब से भगवान् विष्णु श्री रंगनाथस्वामी के रूप में यहां वास करते हैं, और श्रीरंगम् से लेकर श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुवनंतपुरम तक के क्षेत्र में व्याप्त हैं।

      इस विशाल और भव्य मंदिर परिसर का क्षेत्रफल लगभग 156 एकड़ (6,31,000 वर्ग मी.) है और परिधि 4116 मीटर है।

      यह मंदिर कावेरी नदी के तट पर स्थित है।मंदिर परिसर का निर्माण 7 प्रकारों (संकेंद्रित दीवारी अनुभागों) और 21 गोपुरमों से मिलकर किया गया है।इस मंदिर में 7 मुखबिर एवं 21 टावर हैं।इस मंदिर के मुख्य गोपुरम की ऊंचाई 72 मीटर (236 फीट) है, इसे ‘राजगोपुरम (शाही मंदिर टावर)’ कहा जाता है।

रंगनाथस्वामी मंदिर, तमिलनाडु                                                                                           रंगनाथस्वामी मंदिर, तमिलनाडु

 



           वेंकटेश्वर मंदिर, तिरुपति 

    • भगवान विष्णु का प्रसिद्ध तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले के तिरुपति में स्थित है। तिरुमला के सात पर्वतों में से एक वेंकटाद्रि पर बना श्री वेंकटेश्वर मन्दिर यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र है। इसलिए इसे सात पर्वतों का मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है।प्रतिदिन इस मन्दिर में एक से दो लाख श्रद्धालु आते हैं, जबकि किसी ख़ास अवसर या त्योहार जैसे सालाना रूप से आने वाले ब्रह्मोत्सवम में श्रद्धालुओं की संख्या लगभग 5 लाख तक पहुँच जाती है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार, इस मन्दिर में स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति में ही भगवान बसते हैं और वे यहाँ समूचे कलियुग में विराजमान रहेंगे। वैष्णव परम्पराओं के अनुसार यह मन्दिर 108 दिव्य देसमों का एक अंग है। कहा जाता है कि चोलहोयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मन्दिर के निर्माण में ख़ास योगदान रहा है।पहले कपिल तीर्थ में स्नान करके कपिलेश्वर का दर्शन करना चाहिए। फिर ऊपर जाकर भगवान वेंकटेश के दर्शन करना चाहिए। वहाँ से नीचे आकर गोविंद राज तथा तिरुञ्चानूर में पद्मावती के दर्शन करने चाहिए।श्रीबालाजी की मूर्ति पर एक स्थान पर चोट का चिह्न है। वहाँ दवा लगाई जाती है। कहते हैं कि एक भक्त नीचे से प्रतिदिन दूध लाता था। वृद्ध होने पर वह असमर्थ हो गया तो स्वयं बालाजी चुपचाप जाकर उसकी गाय का दूध पी आते थे गाय को दूध न देते देख भक्त ने छिपकर देखा और मानववेष में बालाजी दूध पीने लगे तो डंडा मारा। उसी समय प्रगट होकर उसे भगवान ने दर्शन दिये। मूर्ति में वह डंडा लगाने का चिह्न अभी है। मंदिर में मध्याह्न दर्शन के पश्चात् प्रसाद बिकता है। दर्शनार्थी को भात-प्रसाद निःशुल्क मिलता है।

TIRUPATI BALAJI TAMPLE                                                                         TIRUPATI BALAJI TAMPLE

 


            द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात

 

    • गुजरात में सौराष्ट्र प्रायद्वीप के पश्चिमी सिरे पर स्थित द्वारका भारत का एक प्राचीन शहर है। देवभूमि के रूप में जाना जाने वाला द्वारका एकमात्र ऐसा शहर है जो हिंदू धर्म में वर्णित चार धाम (चार प्रमुख पवित्र स्थान) और सप्त पुरी (सात पवित्र शहर) दोनों का हिस्सा है।द्वारकाधीश मंदिर जिसे जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक चालुक्य शैली की वास्तुकला है, जो भगवान कृष्ण को समर्पित है। द्वारका शहर का इतिहास महाभारत में द्वारका साम्राज्य के समय का है। पांच मंजिला मुख्य मंदिर चूना पत्थर और रेत से निर्मित अपने आप में भव्य और अद्भुत है। माना जाता है कि 2200 साल पुरानी वास्तुकला उनके पोते वज्रनाभ द्वारा बनाई गई थी, जिन्होंने इसे भगवान कृष्ण द्वारा समुद्र से प्राप्त भूमि पर बनाया था। मंदिर के भीतर अन्य मंदिर हैं जो सुभद्रा, बलराम और रेवती, वासुदेव, रुक्मिणी और कई अन्य को समर्पित हैं। स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश करने से पहले भक्तों को गोमती नदी में डुबकी लगानी होती है। जन्माष्टमी में द्वारकाधीश मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक; शाम 5 बजे से 9:30 बजे तक मंदिर खुलता है।माना जाता है कि द्वारका गुजरात की पहली राजधानी थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण मथुरा में अपने मामा कंस को पराजित करने और मारने के बाद यहां बसे थे।मथुरा से चले आए यादव ने यहां अपना राज्य स्थापित किया जब शहर “कौशल्याली” के नाम से जाना जाता था। इस अवधि के दौरान शहर पुनर्निर्माण किया गया और इसका नाम “द्वारका” रखा गया।मान्यता है कि इस स्थान पर मूल मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का विस्तार एवं जीर्णोद्धार होता रहा। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था।

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    • पद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल

    • केरल के तिरुवनंतपुरम में श्री अनंत पद्मनाभस्वामी मंदिर एक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है। यह भगवान विष्णु के अवतार भगवान अनंत को समर्पित है। तिरुवनंतपुरम का शाब्दिक अर्थ है “भगवान अनंत की भूमि”।पद्मनाभस्वामी मंदिर की वास्तुकला केरल शैली और द्रविड़ शैली का एक मिश्रण है, और मंदिर में 100 फुट लंबा गोपुरम (अलंकृत प्रवेश द्वार) है। अंदर, मुख्य मंदिर में, प्रमुख देवता की 18 फुट की मूर्ति अनंतशयनम मुद्रा में आदि शेष पर स्थित है।15वीं शताब्दी के दौरान, गर्भगृह की छत की मरम्मत की गई, जैसा कि ताड़ के पत्ते के रिकॉर्ड में उल्लेख किया गया है। परिसर में ओट्टक्कल मंडपम लगभग उसी समय बनाया गया था। और 17वीं शताब्दी के मध्य के आसपास, राजा अनिज़म थिरुनल मार्तंड वर्मा ने मंदिर में बड़े पैमाने पर जीर्णोद्धार का आदेश दिया।श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर तिरुवनंतपुरम पत्थर और कांस्य के विस्तृत काम के लिए जाना जाता है। वास्तुकला द्रविड़ वास्तुकला शैली और केरल शैली का मिश्रण है, और यह मंदिर तिरुवत्तार के आदि केशव पेरुमल मंदिर जैसा दिखता है। यहां तक ​​कि देवता भी शयन मुद्रा में लेटे हुए एक जैसे ही दिखते हैं।शानदार सात-स्तरीय ऊंचा गोपुरम, जो विस्तृत डिजाइनों से उकेरा गया है, वह पहली संरचना है जिस पर आप ध्यान देंगे। अंदर का बड़ा गलियारा सुंदर नक्काशीदार पत्थर के खंभों और विभिन्न हिंदू देवताओं की मूर्तियों द्वारा समर्थित है। मंदिर के विभिन्न हिस्सों में दीवारों और छतों पर भी सुंदर भित्ति चित्र सुशोभित हैं।
    • thiruvananthapuram TAMPLE                                                                          thiruvananthapuram temple


           गुरुवयूर मंदिर, केरल

    • . गुरुवायुर केरल में त्रिशूर जिले का एक गांव है। जो कि त्रिशूर नगर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान भगवान कृष्ण के मंदिर की वजह से बहुत खास माना जाता है। गुरुवायूर केरल के लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर के देवता भगवान गुरुवायुरप्पन हैं, जो बालगोपालन (कृष्ण भगवान का बालरूप) के रूप में हैं। आमतौर पर इस जगह को दक्षिण की द्वारका के नाम से भी पुकारा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को केरल पहुंचे हैं और यहां उन्होंने गुरुवायुर मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना की है। इस मंदिर में अपने वजन के बराबर चीजें भगवान को अर्पित करने की प्रथा है। पीएम मोदी ने मंदिर में अपने वजन के बराबर कमल के फूल भगवान को अर्पित किए थे। गुरुवायुर अपने मंदिर के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जो कई शताब्दियों पुराना है और केरल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण स्वंय विश्वकर्मा द्वारा किया गया था और मंदिर का निर्माण इस प्रकार हुआ कि सूर्य की प्रथम किरणें सीधे भगवान गुरुवायुर के चरणों पर गिरें। गुरुवायुरप्पन मंदिर को दक्षिण की द्वारिका के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर 5000 साल पुराना है और 1638 में इसके कुछ हिस्से का पुनर्निमाण किया गया था। भगवान श्रीकृष्ण बाल रुप में इस मंदिर में विराजमान हैं। एक अन्य पौराणिक मान्यता के मुताबिक, मंदिर का निर्माण देवगुरु बृहस्पति ने किया था। खास बात ये है कि इस मंदिर में हिंदुओं के अलावा दूसरे धर्मों के लोग प्रवेश नहीं कर सकते हैं।गुरु का अर्थ है देवगुरु बृहस्पति, वायु का मतलब है भगवान वायुदेव और ऊर एक मलयालम शब्द है, जिसका अर्थ होता है भूमि। इसलिए इस शब्द का पूरा अर्थ है – जिस भूमि पर देवगुरु बृहस्पति ने वायु की सहायता से स्थापना की| गुरुवायुर नगर और भगवान गुरुवायुरप्पन के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि कलयुग की शुरुआत में गुरु बृहस्पति और वायु देव को भगवान कृष्ण की एक मूर्ति मिली थी। मानव कल्याण के लिए वायु देव और गुरु बृहस्पति ने एक मंदिर में इसकी स्थापना की और इन दोनों के नाम पर ही भगवान का नाम गुरुवायुरप्पन और नगर का नाम गुरुवायुर पड़ा। मान्यता के अनुसार कलयुग से पहले द्वापर युग के दौरान यह मूर्ति श्रीकृष्ण के समय भी मौजूद थी।
      मंदिर में केवल हिंदू ही प्रवेश कर सकते हैं । गुरुवयूर मंदिर में एक सख्त ड्रेस कोड है, और आपको पारंपरिक भारतीय पोशाक पहननी चाहिए। पुरुष मुंडू/धोती/विस्टी पहन सकते हैं और उन्हें शर्ट या बनियान नहीं पहनना चाहिए, जबकि महिलाएं साड़ी या सलवार कमीज पहन सकती हैं। लड़के शॉर्ट्स पहन सकते हैं और लड़कियां लंबी स्कर्ट और ब्लाउज पहन सकती हैं

Guruvayur Sree Krishna Temple

                                                                   Guruvayur Sree Krishna Temple


अश्वक्लंता मंदिर, गुवाहाटी

    • अश्वक्रांत मंदिर असम में गुवाहाटी के उत्तर में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। अश्वक्रांत मंदिर, जो असम के गुवाहाटी में स्थित है, भगवान विष्णु को समर्पित है। यह विशेष मंदिर ‘योगिनी तंत्र’ के अनुसार बहुत पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा करने से कोई भी पापी मोक्ष प्राप्त कर सकता है। यह विशेष मंदिर ‘योगिनी तंत्र’ के अनुसार बहुत पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा करने से कोई भी पापी मोक्ष प्राप्त कर सकता है। यहां के देवता को अनंतसायिन विष्णु कहा जाता है। ‘अनंतशायिन’ शब्द नाग के शरीर पर भगवान विष्णु की लेटी हुई स्थिति को दर्शाता है, जैसा कि मूर्ति में दर्शाया गया है। भगवान ब्रह्मा की एक मूर्ति को कमल पर बैठे हुए दर्शाया गया है, जो भगवान विष्णु की नाभि से निकलती है।अश्वक्रांता मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक है। वस्तुतः अश्वक्रान्ता शब्द का अर्थ घोड़ों पर चढ़ा हुआ होता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था तब वे इसी स्थान पर आये थे। यह स्थान कृष्ण और रुक्मिणी की कहानी और भगवान कृष्ण के घोड़े से संबंधित है। कहा जाता है कि अश्व जो भगवान कृष्ण का घोड़ा है, उसे यहां के कुछ शत्रुओं ने घेर लिया था। और यह भी सुना जाता है कि जब भगवान कृष्ण कुंडिल नगर से अपनी नगरी द्वारका की यात्रा पर थे तो उन्होंने इस स्थान पर कुछ देर विश्राम किया था क्योंकि उनका घोड़ा अश्व थक गया था।

अश्वक्रांत मंदिर

                                                                                          अश्वक्लंता मंदिर


     रामनाथस्वामी मंदिर, भद्राचलम

श्री सीता रामचन्द्रस्वामी मंदिर तेलंगाना राज्य के भद्राचलम में गोदावरी नदी के तट पर स्थित भगवान राम का प्रसिद्ध मंदिर है। भद्राचलम में स्थित होने के कारण इसे भद्राचलम् मंदिर भी कहा जाता है। हिन्दू मान्यताओं में यह गोदावरी के दिव्यक्षेत्रों में से एक है और अपने महत्व के कारण इसे “दक्षिण अयोध्या” भी कहा जाता है।16 वीं ईस्वी के दौरान कांचेरला गोप्पना ने अबुल हसन कुतुब शाह के शासनकाल में तहसीलदार के रूप में कार्य किया। बाद में भगवान राम के एक सेवक ने गोपना का नाम बख्त रामदासु रखा। कुतुब शाह ने गोपना को जज़िया कर वसूलने का आदेश दिया जो हिंदुओं के लिए दंड है, इसलिए गोपना ने मंदिर के निर्माण के लिए कर के एक हिस्से का उपयोग करके हिंदुओं के लिए एक मंदिर बनाने का फैसला किया। अंत में, उन्होंने छह लाख वाराहों से एक मंदिर का निर्माण किया। यह वह स्थान है जहां भगवान राम ने वनवास के दौरान अपना जीवन बिताने के लिए आश्रम बनाया था। इसमें उन स्थानों को दर्शाया गया है जहां देवी सीता ने स्नान किया था, पत्थरों पर हल्दी और कुमकुम लगाया गया था। आप रावण द्वारा सीता का अपहरण करने के ट्रैक भी पा सकते हैं। जट्टायु पका : जट्टायु एक पक्षी है जो भगवान राम का भक्त है। जब रावण लंका की ओर बढ़ रहा था तो उसने उसे रोकने की कोशिश की। युद्ध के बाद, रावण ने पक्षी को घायल कर दिया और उसका एक पंख कट गया। तब हताश जट्टायु थोड़े समय के लिए जीवित रह कर यह संदेश देने लगा कि किसने अपहरण किया और रावण किस दिशा में उड़ गया। दुम्मुगुदम : वह स्थान, जहां राम ने हजारों राक्षसों और गांवों का वध किया था, कहा जाता है कि इसका निर्माण इन राक्षसों की राख से किया गया था। गुंडाला ।रामनाथस्वामी मंदिर.                                                                                          रामनाथस्वामी मंदिर


श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा, राजस्थान

 राजस्थान किलों और विरासत के रूप में तो प्रख्यात है ही, यह कई धार्मिक संप्रदायों और उनके श्रद्धेय व पवित्र तीर्थ स्थलों का घर भी है. अरावली की गोद में बनास नदी के किनारे नाथद्वारा में ऐसा ही एक तीर्थ स्थल है. इस प्रमुख वैष्णव तीर्थस्थल पर श्रीनाथजी मंदिर में भगवान कृष्ण सात वर्षीय ‘शिशु’ अवतार के रूप में विराजित हैं. औरंगजेब भी मथुरा जिले में बाल रूप श्रीनाथजी की मूर्ति को तुड़वा नहीं पाया था. तब मेवाड़ के राणा द्वारा चुनौती स्वीकारने के बाद यहां गोवर्धनधारी श्रीनाथजी की मूर्ति स्थापित हुई और मंदिर बना.नाथद्वारा में स्थापित भगवान श्रीनाथजी के विग्रह को मूलरूप से भगवान कृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है. राजसमंद जिले में स्थित नाथद्वारा के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक रूप से बहुत समृद्ध है. यह शहर अरावली पर्वतमाला के पास में स्थित है और बनास नदी के किनारे पर बसा हुआ है. नाथद्वारा, उदयपुर से मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. नाथद्वारा, भगवान श्रीनाथजी के मंदिर की वजह से देश—विदेश में प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है.shreenath ji tample                                                                                         shreenath ji tample


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