Kamakhya temple -कामाख्या मंदिर: एक रहस्यमय और शक्तिशाली मंदिर

Kamakhya temple -कामाख्या मंदिर: एक रहस्यमय और शक्तिशाली मंदिर -कामाख्या मंदिर, वह पवित्र स्थल जिसने हर भक्त के दिल की धडकनों में अपनी खास जगह बना ली है। यहाँ की महानता, आध्यात्मिकता और भक्ति की अनूठी भावना ऐसी होती है, जिन्हें शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है।

कामाख्या मंदिर के बारे में जब बात की जाती है, तो शब्दों की कमी महसूस होती है। यहाँ की गहराईयों में छिपी शांति, भक्ति की ऊँचाइयों को स्पर्श करने वाली विशेष महक होती है, जिसमें दिव्यता की अनोखी छवि दिखती है।

मंदिर के परिसर में फैले वन्यजीवन और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच विराजमान मंदिर की महाकायिकता जैसे देवी माँ ने यहाँ अपना आवास बना लिया हो।

जब कोई भक्त मन की भावनाओं के साथ यहाँ पर प्रासाद लेता है, तो उसकी आत्मा को एक अद्वितीय प्रकार की शांति मिलती है, जैसे वह स्वयं देवी की आग्रहार वाली व्यक्ति हो।

कामाख्या मंदिर ने न केवल धार्मिकता की महत्वपूर्णता को बल्कि भक्ति और आध्यात्मिक सामर्थ्य को भी उजागर किया है। यहाँ की विशेष भावना और माता की कृपा ने अनगिनत भक्तों के दिलों को छू लिया है, और उन्हें एक अलौकिक अनुभव का संदेश मिलता है।

कामाख्या मंदिर, वह विशेष स्थान है जहाँ दिल की मंगलकामनाएं और आत्मा की शांति एक साथ मिलती हैं। यहाँ की ध्वनि, आरती की महिमा और देवी की प्रतिमा के सामने खड़े होकर आत्मा की अद्वितीयता का अहसास होता है।

कामाख्या मंदिर में बसने वाली दिव्यता और प्राकृतिकता ने इसे स्वर्ग से भी ऊंचा बना दिया है, और यहाँ के भक्त हमेशा उसी अनुभव को जीने का आनंद प्राप्त करते हैं।

कामाख्या मंदिर, एक ऐसा स्थल है जिसमें भक्तों की आत्मा माँ कामाख्या की आशीर्वाद से जुड़ जाती है, और वहाँ की महिमा को शब्दों में नहीं कह सकते। यहाँ पर माँ की पूजा करते समय जो भावना, भक्ति और प्रेम का अहसास होता है, वह अनुभव बस खुद कर सकता है।

Kamakhya Temple ek rahasymay aur shaktishaali mandir || कामाख्या मंदिर: एक रहस्यमय और शक्तिशाली मंदिर ||
Kamakhya Temple ek rahasymay aur shaktishaali mandir || कामाख्या मंदिर: एक रहस्यमय और शक्तिशाली मंदिर ||

शक्तिपीठों से जुड़ी कहानी :

देवी माता के 51 शक्तिपीठों के बनने के सन्दर्भ में पौराणिक कथा प्रचलित है। यह माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने देवी आदि शक्ति और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया था। देवीशिवजी ने अपनी अद्यशक्ति को फिर से प्राप्त करने का निर्णय लिया। इसलिए उनके पुत्र दक्ष ने माता सती को अपनी बेटी के रूप में प्राप्त करने के लिए एक यज्ञ किया। भगवान शिव के संकल्प से माता सती को इस ब्रह्मांड में लाया गया था और दक्ष का यह यज्ञ सफल रहा।

भगवान शिव के शाप के कारण भगवान ब्रह्मा ने अपने पांचवें सिर को शिव के सामने खो दिया था। इसी कारण से दक्ष के मन में शिव के प्रति द्वेष उत्पन्न हुआ और उन्होंने शिव और माता सती की शादी कराने से इंकार कर दिया। हालांकि, माता सती भगवान शिव के प्रति आकर्षित हो गईं और कठोर तपस्या करते हुए अंत में एक दिन, शिव और माता सती का विवाह हुआ।

दक्ष ने भगवान शिव से प्रतिशोध लेने की इच्छा के साथ एक यज्ञ किया। उन्होंने भगवान शिव और अपनी पुत्री माता सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती ने यज्ञ में उपस्थित होने की इच्छा भगवान शिव के सामने व्यक्त की। उन्होंने माता को रोकने के लिए हर प्रकार से कोशिश की, लेकिन माता सती अपने पिता के करा रहे यज्ञ में बिना आमंत्रण के वहां चलीं गईं।
यज्ञ में पहुँचने के बाद माता सती का स्वागत नहीं किया गया। साथ ही, दक्ष ने शिव जी का अपमान भी किया। माता सती अपने पिता के द्वारा अपने पति का अपमान सहन करने में असमर्थ हो गई और इसलिए उन्होंने अपने शरीर का त्याग उसी यज्ञ की अग्नि में कर दिया। इस अपमान और चोट से प्रभावित होकर भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया और उनके तांडव नृत्य से ,प्रभु ” वीरभद्र”रौद्र अवतार लिया और माता सती के पिता दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और उनका सिर काट दिया। उनकी पत्नी और सभी मौजूद देवताओं के अनुरोध के बाद भगवान शिव को माफ करके उनको नया जीवन और राजा दक्ष को जीवित करने का अनुग्रह किया गया। तब प्रभु शिव जी ने राजा दक्ष के सिर की जगह एक बकरी का सिर उन्होंने लगाया और राजा दक्ष को पुनः जीवित किया । उसके बाद शिव जी दुःखी होकर अपनी पत्नी माता सती के शरीर को उठाकर, वहां से चले गए। उसके बाद उन्होंने माता सती के मोह में सब भूल के विनाश का दिव्य नृत्य किया। अन्य देवताओं ने विष्णु जी से इस विनाश को रोकने के लिए विनती की, जिस पर विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र की सहायता से माता सती के शरीर को 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया। उन टुकड़ों का विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर हुआ और वे शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हुए।और उनकी बडी मान्यता हैं।

इतिहास:-

कामाख्या मंदिर, भारत में सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है और सदियों से इसका महत्वपूर्ण इतिहास है। इसे आठवीं और नौवीं शताब्दी के बीच निर्मित माना जाता है,हुसैन शाह के आक्रमण के समय, कामाख्या मंदिर को नष्ट कर दिया गया, जिससे केवल खंडर बचे। यह लगभग 1500 वर्षों तक गुम हो गया, जब इसे पुनः खोजकर स्थापित किया गया। कोच वंश के संस्थापक विश्वसिंह ने इसे पूजा स्थल के रूप में पुनर्जीवित किया, और उनके बेटे ने 1565 में इसे पुनर्निर्माण किया। इसके बाद, यह मंदिर आज की तरह है और यह भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इसका ऐतिहासिक महत्व अब भी इसकी दीवारों के पीछे छिपा हुआ है, जहां देश के विभिन्न हिस्सों से तीर्थयात्री आते हैं और देवी के दर्शन के लिए हर साल हजारों की संख्या में लोग आते हैं।

स्थान :-

कामाख्या पीठ भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो असम प्रदेश में है। कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या देवी का मन्दिर पहाड़ी पर है, अनुमानत: एक मील ऊँची इस पहाड़ी को नील पर्वत भी कहते हैं। कामरूप का प्राचीन नाम धर्मराज्य था। वैसे कामरूप भी पुरातन नाम ही है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र-सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम की नयी राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलाचल पर्वतमालाओं पर स्थित माँ भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है।

भारत के ईशान कोण तथा योगिनी तंत्र में इसकी सीमा है- पश्चिम में करतोया से दिक्करवासिनी तक, उत्तर में कंजगिरि, पूर्व में तीर्थश्रेष्ठ दिक्षु नदी, दक्षिण में ब्रह्मपुत्र और लाक्षानदी के संगम स्थल तक, त्रिकोणाकार कामरूप की सीमा-लंबाई 100 योजना, विस्तार 30 योजन है। नीलाचल पर्वत के दक्षिण में वर्तमान पाण्डु गौहाटी मार्ग पर जो पहाड़ियाँ हैं, उन्हें नरकासुर पर्वत कहते है। नरकासुर कामरूप के प्राग्जोतिषपुर का राजा था, जिसने त्रेता से द्वापर तक राज्य किया तथा वह कामाख्या का प्रमुख भक्त था।

कामाख्या मंदिर मे योनि(गर्भ) की पूजा:- कामाख्या मंदिर में योनि (गर्भ) की पूजा एक महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक परंपरा का हिस्सा है। यहाँ की महान आध्यात्मिकता में योनि को मातृ शक्ति की प्रतीक और दिव्य स्त्रीत्व का प्रतीक माना जाता है।

योनि पूजा में योनि को एक प्रकार के गर्भ मात्र नहीं, बल्कि प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक माना जाता है, जिनसे जीवन का उत्थान होता है। यह पूजा विशेष रूप से शाक्त सम्प्रदायों में महत्वपूर्ण है और भक्तों के आंतरिक आध्यात्मिक अनुभव को प्रोत्साहित करती है।

योनि पूजा का अद्भुत महत्व उस विशेष स्थान के कारण है जहाँ कामाख्या मंदिर स्थित है। मान्यता है कि मंदिर क्षेत्र में ही माँ कामाख्या की योनि के अंश गिरे थे, जिन्हें इसी स्थान पर स्थापित किया गया। इसलिए यहाँ योनि की पूजा की जाती है और भक्तों का मानना है कि इससे आंतरिक शुद्धि, आत्मा की मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

योनि पूजा के दौरान भक्त अपने आत्मा को माँ कामाख्या के शक्तिपूर्ण प्रतीक में समर्पित करते हैं और उन्हें अपने जीवन की सार्थकता और उद्देश्य की ओर मुख करने का प्रेरणादायक अनुभव होता है। यह पूजा भक्तों को माँ कामाख्या के प्रति उनके प्रेम और विश्वास का प्रतीक मानने में मदद करती है।

कामाख्या मंदिर में प्रवेश का समय:-

कामाख्या मंदिर के दर्शन का समय भक्तों के लिए सुबह 8:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और फिर दोपहर 2:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक शुरू होता है। सामान्य प्रवेश नि: शुल्क है, लेकिन भक्त सुबह 5 बजे से कतार बनाना शुरू कर देते हैं, इसलिए यदि किसी के पास समय है तो इस विकल्प पर जा सकते हैं। आम तौर पर इसमें 3-4 घंटे लगते हैं। वीआईपी प्रवेश की एक टिकट लागत है, जिसे मंदिर में प्रवेश करने के लिए भुगतान करना पड़ता है, जो कि प्रति व्यक्ति रुपए 501 की लागत पर उपलब्ध है। इस टिकट से कोई भी सीधे मुख्य गर्भगृह में प्रवेश कर सकता है और 10 मिनट के भीतर पवित्र दर्शन कर सकता है।

मंदिर का निर्माण :-

कामाख्या मंदिर का निर्माण और विकास विभिन्न सांप्रदायिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में हुआ है, जिसके कारण यह स्थल भारतीय धार्मिकता की धरोहर का अहम हिस्सा बना है। कामाख्या मंदिर के परिसर में विभिन्न मंदिर, प्रतिमाएँ और कुएं हैं जो आराधना और पूजा के लिए समर्पित हैं। महाकाली, तारा, भैरव, चिन्मस्ता आदि विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ यहाँ पर स्थापित हैं जो भक्तों के आगमन का केंद्र बनते हैं।

कामाख्या मंदिर में विशेष रूप से वास्तुकला की दृष्टि से अद्भुत शिल्पकला दिखाई देती है। मंदिर की दीवारों पर विभिन्न चित्रण और नक्काशी का काम किया गया है, जो इसकी महत्वपूर्ण विशेषता है।

कामाख्या मेला, जिसे ‘अम्बुबाची मेला’ भी कहा जाता है, वर्षिक रूप से मनाया जाता है और यह देवी के प्रति श्रद्धाभक्ति का प्रतीक है। मेले के दौरान लाखों भक्त यहाँ आकर देवी की पूजा करते हैं और विभिन्न धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं।

कामाख्या मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थल है, जो भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर, विशालतम अशोक वन, और शानदार प्राकृतिक सौंदर्य भी यात्रियों को मनोरंजन और आत्म-रिचा का अवसर प्रदान करते हैं।

कामाख्या देवी मंदिर का इतिहास और महत्वपूर्णता भारतीय संस्कृति और धार्मिकता के विविध पहलुओं को दर्शाता है और यह एक सामृद्धिक और आध्यात्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

कामाख्या मंदिर तक पहुँचने के लिए निम्नलिखित तरीकों का पालन कर सकते हैं:

1.वाहन से:

गुवाहाटी शहर से कामाख्या मंदिर केवल लगभग १० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप टैक्सी, ऑटोरिक्शा या अपने वाहन से मंदिर पहुँच सकते हैं।

2.बस:

गुवाहाटी से कामाख्या मंदिर तक बस सेवाएँ भी उपलब्ध हैं। आप गुवाहाटी के बस स्टैंड से मंदिर जाने वाले बसों का उपयोग कर सकते हैं।

3.रेल:

गुवाहाटी मंदिर से रेल मार्ग से भी पहुँच सकते हैं। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से कामाख्या रेलवे स्टेशन तक ट्रेन सेवाएँ उपलब्ध हैं।

4.हवाई जहाज़:

गुवाहाटी के लोकप्रिय बोरजहाज़ी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से आप दूसरे शहरों से यहाँ आ सकते हैं।

5.टूर वाहन सेवाएँ:

आप गुवाहाटी में उपलब्ध टूर वाहन सेवाओं का भी उपयोग करके कामाख्या मंदिर जा सकते हैं।

कृपया यात्रा करने से पहले स्थानीय परिप्रेक्ष्य के अनुसार यातायात के विकल्पों की जांच कर लें और सुरक्षित तरीके से आगे बढ़ें।

Kamakhya Temple ek rahasymay aur shaktishaali mandir || कामाख्या मंदिर: एक रहस्यमय और शक्तिशाली मंदिर ||

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