रामायण एक महान ग्रंथ | रामायण चौपाई हिंदी अर्थ सहित | Ramayana Chaupai in Hindi

परिचय

हिन्दू धर्म की प्रमुख एपिक महाकाव्य “रामायण” राम और सीता की कथा को व्याख्यान करने वाला एक महान ग्रंथ है। रामायण ने संस्कृति, धर्म, आदर्शों, और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। रामायण चौपई, जो रामायण के अंतर्गत एक छोटा संग्रह है, भगवान राम के गुणों, कार्यों और महत्वपूर्ण संदेशों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है।
रामायण चौपाई प्राचीन भारतीय साहित्य का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसे सनातन धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। इसका रचना काल लगभग 5,000 वर्ष पूर्व माना जाता है।
रामायण चौपाई में शृंगार रस का प्रयोग किया गया है। इसमें सीता और राम के प्रेम की भावना व्यक्त होती है और उनके मधुर और आदर्शपूर्ण सम्बन्ध का वर्णन किया गया है।
रामायण चौपाई में भगवान राम द्वारा अनेक महत्वपूर्ण उपदेश दिए गए हैं। इसमें जीवन के मूल्यों, कर्तव्यों, न्याय के सिद्धांतों, और धर्मपालन के लिए मार्गदर्शन दिया गया है। ये उपदेश आदर्शपूर्ण और सभ्य जीवन के लिए मार्गदर्शन करते हैं।


चौपई की संरचना

रामायण चौपई में 40 पंक्तियाँ होती हैं, जिन्हें चौपाई कहा जाता है। प्रत्येक चौपाई 16 स्वरों में होती है और दो भागों में विभाजित होती है – पूर्व भाग और उत्तर भाग। पूर्व भाग में रामायण के प्रमुख घटनाक्रम और उत्तर भाग में भगवान राम के गुणों, आदर्शों, और ज्ञान के बारे में महत्वपूर्ण संदेश दिए जाते हैं।


रामायण चौपई के मुख्य सन्दर्भ

रामायण चौपई में विभिन्न महत्वपूर्ण सन्दर्भ शामिल हैं जो रामायण के कथानक, पात्रों, और संदेशों को सुगमता से समझाते हैं। यहां कुछ मुख्य सन्दर्भ दिए जाते हैं:

  • 1. राम की अवतारिता: रामायण चौपई में प्रथम चौपाई में राम की अवतारिता का उल्लेख है। यह सन्दर्भ रामायण के मूल्यवान व्यक्तित्व को बताता है और उसके दिव्यत्व पर प्रकाश डालता है।
  • 2. राम और सीता का मिलन: चौपई में राम और सीता के मिलन का सन्दर्भ दिया जाता है। इससे प्रेम, परस्पर सम्मान, और पारिवारिक समरसता के महत्व को जाना जा सकता है।
  • 3. हनुमान का भक्तिभाव: रामायण चौपई में हनुमान के भक्तिभाव का सन्दर्भ है। हनुमान रामायण के महान भक्त हैं और इस सन्दर्भ से उनकी भक्ति, समर्पण, और शक्ति को प्रेरणा मिलती है।
  • 4.धर्म और न्याय:
    रामायण चौपई में धर्म और न्याय के महत्वपूर्ण सन्दर्भ व्यक्त होते हैं। यह सन्दर्भ धर्म की महत्ता, न्याय के सिद्धांत, और शुभ जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

रामायण चौपई के महत्वपूर्ण पहलु

  • 1. रामायण के रचयिता: रामायण चौपई के रचयिता महर्षि वाल्मीकि माने जाते हैं। उन्होंने रामायण की रचना की जो एक महान काव्य हुआ। इसके रचनाकाल में वाल्मीकि ने रामायण के महत्वपूर्ण संदेशों को चौपई के रूप में संकलित किया।
  • 2. भगवान राम के गुण: रामायण चौपई में भगवान राम के गुणों का उपयोग किया गया है। इसमें उनके धर्मप्रिय, धैर्यशील, न्यायप्रिय, सच्चे, और सामरिक गुणों का वर्णन किया जाता है। ये गुण रामायण चौपई को विशेष बनाते हैं।
  • 3. आध्यात्मिक सन्देश: रामायण चौपई में आध्यात्मिक सन्देश छिपे हैं। यह संक्षेप में बताता है कि मनुष्य का अस्तित्व अधर्म के विरुद्ध जीने के लिए नहीं है, बल्क धर्मपालन के लिए है। इसके माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान और सुख-शांति की प्राप्ति का मार्ग दर्शाया जाता है। चौपई में उच्च आदर्शों की भावना, संयम, समर्पण, और आत्मनिर्भरता के महत्व को भी प्रदर्शित किया गया है। यह सन्देश हमें आध्यात्मिकता की महत्वपूर्णता और मन की पवित्रता को समझने में मदद करता है।
  • 4. प्रभाव: रामायण चौपाई का पाठ और सुनने से श्रद्धालुओं के मन, चित्त, और आत्मा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह चौपाई उदात्तता, शांति, आनंद, और आत्मिक संगीत का अनुभव कराती है। इसके पाठ से श्रद्धालु भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति, शुद्धि, और स्वयं के साथ भगवान के सामर्थ्य का अनुभव होता है।
  • 5. मान्यता: रामायण चौपाई को अनेक धार्मिक समुदायों में महत्वपूर्ण मान्यता प्राप्त है। इसे रोज़ाना पाठ करने, प्रतिदिन सुनने या प्रतिवर्ष विशेष अवसरों पर उपयोग करने की परंपरा है। यह चौपाई भक्तों के आध्यात्मिक और मानसिक स्थिति को सुधारने का एक मार्ग प्रदान करती है।
  • 6. संगीतिकता: रामायण चौपाई को संगीतिक रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है। कई संगीत रचनाओं में इसका उपयोग किया जाता है जिससे यह चौपाई और भगवान राम के महिमा गान का एक हिस्सा बनती है।

रामायण चौपाई के अद्भुत बातें

  • – चमत्कारिक शक्ति: कहा जाता है कि रामायण चौपाई का पाठ या जाप करने से चमत्कारिक प्रभाव होता है। यह चौपाई भक्तों को संयम, स्थिरता, और अद्भुत शक्तियों का अनुभव कराती है।
  • – रोगनिवारण का उपयोग: रामायण चौपाई को रोग निवारण के लिए भी उपयोग किया जाता है। कुछ लोग विशेष रूप से यह मानते हैं कि इसका जाप करने से शरीर के रोगों का नाश होता है और शारीरिक स्वास्थ्य बना रहता है।
  • – मनोकामना पूर्ति: रामायण चौपाई को मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी प्रयोग किया जाता है। भक्त इसे संयमित मन से जाप करते हैं और अपनी इच्छाओं की प्राप्ति के लिए भगवान का आशीर्वाद मांगते हैं।
  • – शांति और सुख का स्रोत: रामायण चौपाई में उपस्थित मनोहारी संगीत और शान्त भावना से युक्त शब्दों का पाठ करने से मन को शांति और सुख की अनुभूति होती है। यह चौपाई मन को शांत, स्थिर, और प्रसन्न बनाने में मदद करता हैं


बिनु सत्संग विवेक न होई। 
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई॥

अर्थ : सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं मिलता, सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है।



जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥

अर्थ : जिन पर राम की कृपा होती है, उन्हें कोई सांसारिक दुःख छू तक नहीं सकता। परमात्मा जिस पर कृपा करते है उस पर तो सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । और जिनके अंदर कपट, दम्भ (पाखंड) और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में रघुपति बसते हैं अर्थात उन्हीं पर प्रभु की कृपा होती है।

कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥

अर्थ : हे तात ! मेरा प्रणाम और आपसे निवेदन है – हे प्रभु! यद्यपि आप सब प्रकार से पूर्ण काम हैं (आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है), तथापि दीन-दुःखियों पर दया करना आपका विरद (प्रकृति) है, अतः हे नाथ ! आप मेरे भारी संकट को हर लीजिए (मेरे सारे कष्टों को दूर कीजिए)॥

हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥

अर्थ : हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।

जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥

अर्थ : (शिवजी कहते हैं) हे भवानी सुनो – जिनका नाम जपकर ज्ञानी मनुष्य संसार रूपी जन्म-मरण के बंधन को काट डालते हैं, क्या उनका दूत किसी बंधन में बंध सकता है? लेकिन प्रभु के कार्य के लिए हनुमान जी ने स्वयं को शत्रु के हाथ से बंधवा लिया।

एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥

अर्थ : रामचरितमानस में श्री रघुनाथजी का नाम उदार है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, मंगल (कल्याण) करने वाला और अमंगल को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित स्वयं भगवान शिव सदा जपा करते हैं।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा।
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥

अर्थ : जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे। अर्थात इस विषय में तर्क करने से कोई लाभ नहीं।  (मन में) ऐसा कहकर भगवान शिव हरि का नाम जपने लगे और सती वहाँ गईं जहाँ सुख के धाम प्रभु राम थे।

करमनास जल सुरसरि परई,
तेहि काे कहहु सीस नहिं धरई।
उलटा नाम जपत जग जाना,
बालमीकि भये ब्रह्म समाना।।

अर्थ : कर्मनास का जल (अशुद्ध से अशुद्ध जल भी) यदि गंगा में पड़ जाए तो कहो उसे कौन नहीं सिर पर रखता है? अर्थात अशुद्ध जल भी गंगा के समान पवित्र हो जाता है। सारे संसार को विदित है की उल्टा नाम का जाप करके वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए।

अनुचित उचित काज कछु होई,
समुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं,
कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।

अर्थ : किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह जानकर करना चाहिए, उसी को सभी लोग भला कहते हैं। जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं,  उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं कहता।

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥

अर्थ : हे नाथ ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख और समृद्धि) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ विभिन्न प्रकार की विपत्ति (दुःख) का वाश होता है।

कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा।
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥

अर्थ : जब मां सीता का पता लगाने के लिए समुद्र को पार करके त्रिकूट पर्वत पर स्थित लंका में जाना था, तब जामवंत जी ने हनुमान जी से कहा- हे पवनसुत हनुमान जी जगत में ऐसा कौन सा कार्य है जिसे आप नहीं कर सकते, संसार का कठिन से कठिन कार्य भी आपके स्मरण मात्र से सरल हो जाता है। ऐसा कहते हुए जामवंत जी ने हनुमान जी को यह स्मरण कराया कि आपका जन्म प्रभु श्री राम के कार्य के लिए हुआ है, ऐसा सुनते ही पवनसुत हनुमान जी पर्वत के आकार के समान विशालकाय (पर्वतों के राजा सुमेरू पर्वत के समान) हो गए।

 

 

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